स्वतंत्रता प्राप्ति के समय भारतीय अर्थव्यवस्था



भारतीय अर्थव्यवस्था का औपनिवेशिक शोषण ( Colonial Exploitation of the Indian Economy ) : 


ब्रिटिश शासन के अंतर्गत भारतीय अर्थव्यवस्था औपनिवेशिक शोषण का शिकार हुई । इसका अर्थ यह है कि ब्रिटिश सरकार द्वारा अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्रों का लक्ष्यबद्ध शोषण किया गया । यह कैसे प्राप्त किया गया , इसका विवरण निम्नलिखित है : 

( i ) कृषि क्षेत्र का औपनिवेशिक शोषणः कषि का शोषण भ - राजस्व की जमींदारी प्रथा द्वारा किया गया । जमींदारों को भूमि के स्वामी घोषित कर दिया गया । इनको भ - राजस्व के रूप में सरकार को एक पूर्व निर्धारित राशि देनी होती थी और उन्हें यह स्वतंत्रता प्राप्त थी कि वे भूमि के जोतने वालों से जितनी भी चाहें राशि वसूल कर सकते थे ।

 (2 ) औद्योगिक क्षेत्र का औपनिवेशिक शोषण : भारत में औद्योगिक क्षेत्र का अर्थ था हस्तशिल्प की प्रधानता । परंत ब्रिटेन से | मशीन द्वारा बनी वस्तुओं के शुल्क - मुक्त ( Tariff - free ) आयात ने इसका ( हस्तशिल्प ) क्रमबद्ध तरीके से विनाश किया ।

 ( iii ) अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का औपनिवेशिक शोषणः भारत के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का शोषण विभेदात्मक तटकर नीति द्वारा किया गया । ब्रिटेन में औद्योगिक जरूरतों को परा करने के लिए भारतीय कच्चे माल का शुल्क मुक्त निर्यात किया गया । इसके विपरीत , ब्रिटिश उद्योगपतियों द्वारा ब्रिटिश वस्तओं के शल्क - मुक्त आयात भारतीय बाजारों में पहुंचाने को प्रोत्साहन दिया गया । 


ब्रिटिश शासन के अंतर्गत कृषि की अवस्था ( State of Agriculture under the British Rule ) :


 ब्रिटिश शासन के अंतर्गत भारतीय कृषि की निम्नलिखित विशेषताएँ दिखती हैं : 

( i ) इसने उत्पादकता के निम्न स्तर को प्रकट किया , 

( ii ) इसने उच्चकोटि की संवेदनशीलता ( Vulnerability ) को प्रकट कियाः अच्छी वर्षा होने पर अच्छी फसल और कम वर्षा होने पर खराब फसल ,

 ( iii ) इस पर जीवन निर्वाह खेती का प्रभूत्व थाः खेतों को जोतने वालों ने कषि को केवल एक जीवन निर्वाह की दष्टि से । लिया , कभी इसको लाभ का स्रोत नहीं समझा , 

( iv ) इसने भूमि के स्वामी ( जमींदार ) और उसे जोतने वाले के बीच चौड़ी खाई | को प्रकट किया और उनके उत्पादन संबंध भी सदैव विरोधी रहे : जमीदारों ने कपक का भरपूर शोषण किया और कृषक सदैव अपने आपको बेदखली ( Ejection ) से बचाते रहे , 

( 5) कृषि से प्राप्त आधिक्य ( भू - राजस्व के रूप में ) को विलासितापूर्ण उपभोग पर व्यय किया गया । कृषि के विकास के लिए इसका निवेश बहत ही कम किया गया । इसके फलस्वरूप कृषि का पिछड़ापन इसकी एक स्थाई विशेषता बन गई ।


  ब्रिटिश शासन के अंतर्गत उद्योग की अवस्था ( State of Industry under the British Rule ) :


 भारतीय उद्योग ( जिस । पर हस्तशिल्प का प्रभुत्व था ) जो किसी समय परे संसार में प्रसिद्ध था , ब्रिटिश शासन काल में उसका क्रमबद्ध विनाश हुआ । यह मुख्यतया ब्रिटिश सरकार की विभेदमलक नीति के कारण संभव हआ । भारतीय बाजारों में सस्ती औद्योगिक वस्तुओं को शुल्क - मुक्त प्रवेश की अनुमति दे दी गई , जबकि भारत से हस्तशिल्प वस्तओ पर भारी निर्यात - शुल्क , लगा दिया गया । भारत में हस्तशिल्प घरेलु तथा अंतर्राष्ट्रीय दोनों बाजारों में अपना अस्तित्व खो बैठे । 

ब्रिटिश शासन के अंतर्गत अंतर्राष्ट्रीय व्यापार की अवस्था ( State of International Trade under the British Rule ) : 

भारत का अंतर्राष्ट्रीय व्यापार दो प्रकार से प्रभावित हुआ :

 ( i ) इस पर ब्रिटिश सरकार का एकाधिकार हो गया , जिससे भारत से | बहराष्ट्रीय निर्यात बंद हो गए और

 ( ii ) व्यापार संरचना में अंतिम वस्तुओं के निर्यात के स्थान पर कच्चे माल का निर्यात होने | लगा । बुलियन ( सोना तथा चाँदी ) के आयात के स्थान पर अंतिम औद्योगिक वस्तुओं का आयात होने लगा जो मुख्यतः ब्रिटेन से | ही आ रही थी ।


 . ब्रिटिश शासन के अंतर्गत जनांकिकीय रूपरेखा ( Demographic Profile under the British Rule ) :


 भारत को जनांकिकीय रूपरेखा इस प्रकार है : उच्च जन्म दर , उच्च मृत्यु दर , उच्च शिशु मृत्यु दर निम्न जीवन अवधि और निम्न साक्षरता दर । ये सभी विशेषताएँ देश के आर्थिक तथा सामाजिक पिछड़ेपन की प्रतीक है ।


 . ब्रिटिश शासन के अंतर्गत व्यावसायिक ढाँचा ( Occupational Structure under the British Rule ) :


 70 प्रतिशत से अधिक कार्यशील जनसंख्या कृषि में काम प्राप्त किए हुए थी । कार्यशील जनसंख्या के मात्र 9 प्रतिशत को उद्योग रोजगार उपलब्ध करा रहा था । यह भी एक देश के आर्थिक तथा सामाजिक पिछड़ेपन के अन्य प्रतीक थे । 


 स्वतंत्रता के समय आधारिक संरचना ( Infrastructure on the Eve of Independence ) ; 


आर्थिक तथा सामाजिक दोनों आधारिक संरचनाओं का स्तर बहुत ही निम्न था । साधारण परिवर्तन हए परंत सभी परिवर्तन केवल भारतीय अर्थव्यवस्था के औपनिवेशिक शोषण को बढ़ावा देने वाले थे ।

 . भारत में ब्रिटिश शासन के कुछ धनात्मक पक्ष - प्रभाव ( Some Positive Side - effects of the British Rule in India ) : 

भारत में ब्रिटिश वस्तुओं के लिए बाजार के आकार को बढ़ाने की दृष्टि से , ब्रिटिश सरकार को भारत में कुछ आधारिक संरचना सविधाएं उपलव्य कराने की आवश्यता थी । इनमें शामिल :

 ( i ) यातायात सुविधाएँ , विशेष कर रेलों के रूप में . 

( ii ) बंदरगाहों का विकास ,

 ( iii ) डाक तथा टेलीग्राफ सेवाओं का प्रावधान । इसके अतिरिक्त ब्रिटिश सरकार ने एक सशक्त एवं कुशल प्रशासनात्मक ढाँचे की विरासत छोड़ी ।

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