Class 11 Business Studies Chapter 10 Notes आंतरिक व्यापार

Class 11 Business Studies Chapter 9 जिसका नाम Internal Trade है इस पाठ में लघु व्यवसाय तथा उध्मिता के बारे में बताया गया है 

→ व्यापार से आशय लाभ अर्जन के उद्देश्य से वस्तुओं एवं सेवाओं के क्रय एवं विक्रय से है। क्रेता एवं विक्रेताओं की भौगोलिक स्थिति के आधार पर व्यापार निम्न दो प्रकार का हो सकता है

  • आन्तरिक व्यापार
  • बाह्य व्यापार।

→ आन्तरिक व्यापार एक देश की सीमाओं के भीतर किया जाता है, जबकि बाह्य व्यापार दो या दो से अधिक देशों के बीच किया जाता है।

→  आन्तरिक व्यापार:
जब वस्तुओं एवं सेवाओं का क्रय-विक्रय एक ही देश की सीमाओं के अन्दर किया जाता है तो यह आन्तरिक व्यापार कहलाता है।

→ आन्तरिक व्यापार के प्रकार:
आन्तरिक व्यापार को दो भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है-प्रथम, थोक व्यापार तथा द्वितीय, फुटकर व्यापार।

→ थोक व्यापार का अर्थ:
जब पुनः विक्रय अथवा पुनः उत्पादन के लिए बड़ी मात्रा में वस्तुओं एवं सेवाओं का क्रय-विक्रय किया जाता है, तो यह थोक व्यापार कहलाता है।


→ फुटकर व्यापार का अर्थ:
जब वस्तुओं एवं सेवाओं का क्रय-विक्रय कम मात्रा में हो और जो सामान्यतया उपभोक्ताओं के लिए किया गया हो, तो इसे फुटकर व्यापार कहते हैं।

→ थोक व्यापार:
थोक व्यापार उन व्यक्तियों अथवा संस्थाओं की क्रियाएँ हैं जो फुटकर विक्रेताओं एवं अन्य व्यापारियों अथवा औद्योगिक संस्थागत एवं वाणिज्यिक उपयोगकर्ताओं को विक्रय करते हैं। लेकिन ये अन्तिम उपभोक्ताओं को विक्रय नहीं करते हैं।

→ थोक विक्रेताओं की सेवाएँ:
थोक विक्रेताओं द्वारा प्रदान की जाने वाली सेवाएँ निम्नलिखित हैं
1. विनिर्माताओं के प्रति सेवाएँ

  • बड़े पैमाने पर उत्पादन में सहायक
  • जोखिम उठाना
  • वित्तीय सहायता प्रदान करना
  • विशेषज्ञ सलाह देना
  • विपणन में सहायक होना
  • निरन्तरता में सहायक होना
  • संग्रहण करना।

2. फुटकर विक्रेताओं के प्रति सेवाएँ

  • वस्तुओं को उपलब्ध कराना
  • विपणन में सहायक होना
  • साख प्रदान करना
  • विशिष्ट ज्ञान का लाभ देना
  • जोखिम में भागीदारी।।

→ फुटकर व्यापार:
फुटकर व्यापार वह व्यापार होता है जिससे व्यावसायिक इकाई या व्यवसायी वस्तुओं एवं सेवाओं को सीधे अन्तिम उपभोक्ताओं को बेचते हैं। इसमें थोक व्यापारियों से माल खरीद कर थोड़ी-थोड़ी मात्रा में उपभोक्ताओं को बेचा जाता है।

→ फुटकर व्यापारियों की सेवाएँ:
फुटकर व्यापारियों द्वारा प्रदान की जाने वाली सेवाएँ निम्नलिखित हैं
1. उत्पादकों एवं थोक विक्रेताओं की सेवाएँ

  • वस्तुओं के वितरण में सहायता करना
  • व्यक्तिगत विक्रय करना
  • बड़े पैमाने पर परिचालन में सहायक होना
  • बाजार सम्बन्धित सूचनाएँ एकत्रित करना
  • प्रवर्तन में सहायक।

2. उपभोक्ताओं को सेवाएँ

  • उत्पादों को नियमित रूप से उपलब्ध कराना
  • नये उत्पादों के सम्बन्ध में सूचना देना
  • क्रय में सुविधा प्रदान करना
  • चयन के पर्याप्त अवसर देना
  • बिक्री के बाद सेवाएं प्रदान करना
  • उधार की सुविधा प्रदान करना।

→ माल एवं सेवाकर (जी.एस.टी.):
'एक देश एक कर' के मूल मंत्र का अनुसरण करते हुए भारत सरकार ने 1 जुलाई, 2017 को माल एवं सेवाकर लागू किया। ताकि निर्माताओं, उत्पादकों, निवेशकों और उपभोक्ताओं के हितों के लिए वस्तुओं और सेवाओं का मुक्त परिचालन हो सके।
माल एवं सेवा कर एक गंतव्य आधारित एकल कर है जो निर्माणकर्ताओं से लेकर उपभोक्ताओं तक वस्तुओं और सेवाओं की पूर्ति पर लागू होता है। जी.एस.टी. में केन्द्रीय जी.एस.टी. और राज्य जी.एस.टी. का समावेश है।

→ फुटकर व्यापार के प्रकार:
भारत में कई प्रकार के फुटकर विक्रेता होते हैं। व्यावसायिक आकार के आधार पर ये बड़े, मध्यम एवं छोटे आकार के फुटकर व्यापारी हो सकते हैं। स्वामित्व के अनुसार ये एकाकी व्यापारी, साझेदारी फर्म, सहकारी स्टोर एवं कम्पनी के रूप में हो सकते हैं। बिक्री की पद्धतियों के आधार पर ये विशिष्ट दुकानें, सुपर बाजार एवं विभागीय भण्डारों के रूप में हो सकते हैं। इसी प्रकार व्यापार के निश्चित स्थान के आधार पर ये भ्रमणशील फुटकर विक्रेता तथा स्थायी दुकानदार के रूप में हो सकते हैं। 

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→ भ्रमणशील फुटकर विक्रेता:
ये वे फुटकर व्यापारी होते हैं जो किसी स्थायी जगह से अपना व्यापार नहीं करके अपने सामान के साथ ग्राहकों की तलाश में गली-गली एवं एक स्थान से दूसरे स्थान पर घूमते हुए माल बेचते हैं। भ्रमणशील फुटकर विक्रेता में सम्मिलित हैं—फेरी वाले, सावधिक बाजार व्यापारी, पटरी विक्रेता, सस्ती दर की दुकानें।

→ स्थायी दुकानदार:
यह वे फुटकर विक्रेता होते हैं जो अपने स्थायी संस्थानों से विक्रय का कार्य करते हैं। ये अपने ग्राहकों के लिए जगह-जगह नहीं घूमते हैं। परिचालन के आधार पर स्थायी दुकानदार मुख्यतः दो प्रकार के हो सकते हैं
1. छोटे स्थायी फुटकर विक्रेता

  • जनरल स्टोर
  • विशिष्टीकृत भण्डार
  • गली में स्टाल
  • पुरानी वस्तुओं की दुकान
  • एक वस्तु के भण्डार।

2. स्थायी दुकानें-बड़े पैमाने के भण्डार गृह
(1) विभागीय भण्डार-एक विभागीय भण्डार एक बड़ी इकाई होती है जो विभिन्न प्रकार के उत्पादों की बिक्री करती है, जिन्हें भली-भाँति निश्चित विभागों में बाँटा गया होता है तथा जिनका उद्देश्य ग्राहक की लगभग प्रत्येक आवश्यकता की पूर्ति एक ही छत के नीचे करना है।

विशेषताएँ

  • सभी प्रकार की सुविधाएँ प्रदान करना
  • शहर के केन्द्र में स्थिति
  • बड़ा आकार
  • फुटकर विक्रेता
  • माल के क्रय की केन्द्रीय स्थिति

लाभ

  • बड़ी संख्या में ग्राहकों को आकर्षित करना
  • क्रय करना आसान
  • आकर्षक एवं अधिकतम सेवाएँ प्रदान करना
  • बड़े पैमाने पर परिचालन के लाभ प्राप्त होना
  • विक्रय में वृद्धि।

सीमाएँ

  • व्यक्तिगत ध्यान का अभाव
  • उच्च परिवहन लागत
  • हानि की संभावना अधिक रहना
  • असुविधाजनक स्थिति।

(2) श्रृंखला भण्डार अथवा बहुसंख्यक दुकानें-शृंखला भण्डार अथवा बहुसंख्यक दुकानें फुटकर दुकानों का फैला हुआ जाल है जिनका स्वामित्व एवं परिचालन उत्पादनकर्ता या मध्यस्थ करते हैं। इस व्यवस्था में एक जैसी दिखाई देने वाली कुछ दुकानें देश के विभिन्न भागों में विभिन्न स्थानों पर खोली जाती हैं। इन दुकानों पर मानकीय एवं ब्रांड की वस्तुएँ जिनका विक्रय आवर्त तीव्र होता है, विक्रय की जाती है।

विशेषताएँ

  • बड़ी जनसंख्या वाले क्षेत्रों में स्थित।
  • उत्पादन अथवा क्रय मुख्यालय द्वारा
  • प्रत्येक दुकान का प्रबन्धन एक प्रबन्धक द्वारा
  • शाखाओं का नियन्त्रण मुख्यालय द्वारा
  • एक मूल्य,
  • निरीक्षकों की नियुक्ति
  • ऐसी वस्तुओं का व्यापार जिनमें वर्षभर समान बिक्री रहे।

लाभ:

  • बड़े पैमाने की मितव्ययिता प्राप्त होना
  • मध्यस्थों की समाप्ति
  • कोई अशोध्य ऋण नहीं
  • वस्तुओं का हस्तान्तरण होना
  • जोखिम का बिखराव होना
  • निम्न लागत होना
  • लोचपूर्णता।

सीमाएँ/हानियाँ:

  • वस्तुओं का चयन सीमित मात्रा में
  • कर्मचारियों में प्रेरणा का अभाव होना
  • व्यक्तिगत सेवा का अभाव होना
  • माँग परिवर्तन करना कठिन।

→ विभागीय भण्डार एवं बहुसंख्यक दुकानों में अन्तर का आधार:

  • स्थिति
  • उत्पादों की श्रेणी
  • प्रदत्त सेवाएँ
  • कीमत/मूल्य
  • ग्राहकों का वर्ग
  • उधार की सुविधा
  • लोचपूर्ण।

(3) डाक आदेश गृह-यह वह फुटकर विक्रेता होते हैं जो डाक द्वारा वस्तुओं का विक्रय करते हैं। इस प्रकार के व्यापार में विक्रेता एवं क्रेता में कोई प्रत्यक्ष व्यक्तिगत सम्पर्क नहीं होता है। आदेश प्राप्त करने के लिए यह सम्भावित ग्राहकों से समाचार पत्र अथवा पत्रिकाओं में विज्ञापन, परिपत्र, अनुसूची, नमूने एवं बिल एवं मूल्य सूची जो उन्हें डाक से भेजे जाते हैं के द्वारा सम्पर्क बनाते हैं।

लाभ:

  • सीमित पूँजी की आवश्यकता
  • मध्यस्थों की समाप्ति
  • विस्तृत क्षेत्र
  • अशोध्य ऋण संभव नहीं
  • सुविधा।

सीमाएँ:

  • व्यक्तिगत सम्पर्क की कमी
  • उच्च प्रवर्तन लागत
  • बिक्री के बाद की सेवा का अभाव
  • उधार की सुविधा की कमी
  • सुपुर्दगी में विलम्ब
  • दुरुपयोग की संभावना
  • डाक सेवाओं पर अधिक निर्भरता।
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(4) उपभोक्ता सहकारी भण्डार:
उपभोक्ता सहकारी भण्डार एक ऐसा संगठन है जिसके उपभोक्ता, स्वामी स्वयं ही होते हैं तथा वही उसका प्रबन्ध एवं नियन्त्रण करते हैं। इनका उद्देश्य उन मध्यस्थों की संख्या को कम करना है जो उत्पाद की लागत को बढ़ाते हैं। इस प्रकार ये सदस्यों की सेवा करते हैं। सामान्यतया ये वस्तुओं को सीधे उत्पादक अथवा थोक विक्रेता से बड़ी मात्रा में क्रय करते हैं तथा उन्हें उपभोक्ताओं को उचित मूल्य पर विक्रय करते

लाभ:

  • स्थापना सरल
  • सीमित दायित्व
  • प्रजातान्त्रिक प्रबन्ध
  • कम कीमत
  • नकद बिक्री
  • सुविधाजनक स्थिति।

→ सीमाएँ:

  • प्रेरणा का अभाव
  • कोषों की कमी
  • संरक्षण का अभाव
  • व्यावसायिक प्रशिक्षण का अभाव।

(5) सुपर बाजार-सुपर बाजार एक बड़ी फुटकर व्यापारिक संस्था होती है जो कम लाभ पर अनेकों प्रकार की वस्तुओं का विक्रय करती है। इनमें स्वयंसेवा, आवश्यकतानुसार चयन एवं भारी विक्रय का आकर्षण होता है। इनमें अधिकांश खाद्य सामग्री एवं अन्य कम मूल्य की वस्तुएँ ब्राण्ड वाली एवं बहुतायत में उपयोग में आने वाली उपभोक्ता वस्तुओं का विक्रय किया जाता है।

विशेषताएँ:

  • हर प्रकार की सामग्री का विक्रय
  • क्रय एक ही छत के नीचे
  • स्वयं सेवा के सिद्धान्त पर संचालन
  • निम्न परिचालन लागत
  • वस्तुओं का नकद विक्रय
  • केन्द्रीय स्थानों पर स्थित।

लाभ:

  • एक ही छत के नीचे कम लागत पर वस्तुओं का विक्रय
  • शहर के केन्द्र में स्थित
  • चयन के अधिक अवसर प्राप्त होना
  • कोई अशोध्य ऋण नहीं
  • बड़े पैमाने के लाभ प्राप्त होना।

सीमाएँ:

  • उधार विक्रय नहीं
  • व्यक्तिगत ध्यान की कमी
  • वस्तुओं की अव्यवस्थित देख-रेख
  • भारी ऊपरी व्यय
  • भारी पूँजी की आवश्यकता।

(6) विक्रय मशीनें:
वस्तुओं के विक्रय में विक्रय मशीनें एक नवीन क्रान्ति है। विक्रय मशीन में पैसा डालते ही बिक्री का काम शुरू कर देती है। विक्रय मशीनें कम कीमत की पूर्व परिबंधित ब्रांड वस्तुएँ, जिनकी बहुत अधिक बिक्री होती है जिनकी प्रत्येक इकाई का एक ही आकार एवं वजन होता है, बिक्री के लिए अधिक उपयोगी हैं । इनके माध्यम से गर्म-ठण्डे पेय पदार्थ, प्लेटफार्म टिकट, सिगरेट, चॉकलेट, समाचार-पत्र आदि का विक्रय किया जा सकता है। बैंकिंग क्षेत्र में ए.टी.एम. की सेवाएँ मशीनें ही प्रदान कर रही हैं।

वाणिज्य एवं उद्योग संगठनों की आन्तरिक व्यापार संवर्द्धन में भूमिका:
वाणिज्य एवं उद्योग संगठन व्यापार, वाणिज्य एवं उद्योग के क्षेत्र में अपने आपको राष्ट्रीय संरक्षक के रूप में प्रस्तुत करती रही हैं।

इनका आन्तरिक व्यापार के क्षेत्र में हस्तक्षेप मुख्यतः निम्न क्षेत्रों में है

  • परिवहन अथवा वस्तुओं का अन्तर्राज्यीय स्थानान्तरण/ आवागमन
  • चुंगी एवं स्थानीय कर
  • बिक्री कर ढाँचा एवं मूल्य सम्बन्धित कर में एकरूपता
  • कृषि उत्पादों के विपणन एवं इससे जुड़ी समस्याएँ
  • माप-तोल तथा ब्रॉण्ड वस्तुओं की नकल को रोकना
  • उत्पादन कर
  • सुदृढ़ मूलभूत ढाँचे का प्रवर्तन
  • श्रम कानून।

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