Class 11 Business Studies Chapter 9 Notes सूक्ष्म, लघु तथा मध्यम उद्यम और व्यावसायिक उद्यमिता

 → भारत में 'ग्रामीण एवं लघु उद्योग क्षेत्र' में 'परम्परागत' तथा 'आधुनिक' लघु उद्योग सम्मिलित हैं। इस क्षेत्र के आठ उपसमूह हैं-हथकरघा, हस्तशिल्प, नारियल की जटा, रेशम उत्पादन, खादी एवं ग्रामोद्योग छोटे पैमाने के उद्योग के अन्तर्गत आते हैं जबकि अन्य परम्परागत उद्योगों के अन्तर्गत आते हैं। ये उद्योग भारत में रोजगार के सबसे अधिक अवसर उपलब्ध कराते हैं।

→ लघु व्यवसाय के प्रकार:
व्यवसाय इकाइयों के आकार को मापने हेतु कई मापदण्ड प्रयुक्त किये जा सकते हैं। इनमें व्यवसाय में नियुक्त व्यक्ति, व्यवसाय में विनियोजित पूँजी, उत्पादन की मात्रा अथवा व्यवसाय के उत्पादन का मूल्य तथा व्यवसाय क्रियाओं हेतु प्रयुक्त की गई ऊर्जा सम्मिलित हैं। यद्यपि ऐसा कोई मापदण्ड नहीं है जिसकी सीमाएँ नही हों।

→ लघु उद्योगों को विवेचित करने हेतु भारत सरकार द्वारा प्रयुक्त की गई परिभाषा संयंत्र एवं मशीनरी पर आधारित है। बड़े क्षेत्र के आविर्भाव ने सरकार को विवश किया कि वह अन्य उद्यमों, जिनमें छोटे पैमाने के उद्योगों तथा सम्बन्धित सेवा इकाइयों को एक ही छत के नीचे लाया जाये। सूक्ष्म, लघु तथा मध्यम उपक्रम विकास अधिनियम, 2006, परिभाषा, साख, विपणन तथा प्रौद्योगिकी के स्तरोन्नयन पर ध्यान देता है। मध्यम पैमाने के उपक्रम विकास अधिनियम, 2006, अक्टूबर, 2006 से प्रभावित हुआ।


इसके अनुसार उपक्रमों को दो मुख्य श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है
1. निर्माणी:

  • सूक्ष्म उपक्रम,
  • लघु उपक्रम,
  • मध्यम उपक्रम

2. सेवाएँ:

  • सूक्ष्म उपक्रम,
  • लघु उपक्रम,
  • मध्यम उपक्रम

→ ग्रामीण उद्योग:
विद्युत ऊर्जा का उपयोग करने वाला अथवा नहीं करने वाला, ग्रामीण क्षेत्र में स्थित कोई उद्योग, जो कि वस्तु का उत्पादन करता है या सेवा उपलब्ध कराता है, ग्रामीण उद्योग कहलाता है।

→ कुटीर उद्योग:
कुटीर उद्योगों को ग्रामीण उद्योग अथवा परम्परागत उद्योग भी कहा जाता है। छोटे पैमाने के अन्य उद्योगों की तरह इन्हें पूंजी निवेश की कसौटी द्वारा परिभाषित नहीं किया जा सकता है।

→ भारत में लघु व्यवसाय की भूमिका:

  • सन्तुलित क्षेत्रीय विकास करना
  • रोजगार के अधिक अवसर पैदा करना
  • उत्पादों की आपूर्ति करना
  • देश का औद्योगिक विकास करना
  • उद्यमिता का विकास करना
  • कम लागत पर उत्पादन करना
  • सही समय पर नये अवसरों का लाभ उठाना।

→ ग्रामीण भारत में लघु व्यवसाय की भूमिका:
कुटीर एवं ग्रामीण उद्योग ग्रामीण क्षेत्रों में, विशेषतः परम्परागत दस्तकारों तथा समाज के कमजोर वर्ग हेतु रोजगार के अवसर उपलब्ध कराने, ग्रामीण जनसंख्या के रोजगार की खोज में शहरी क्षेत्रों में प्रवासन को रोकने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ये गरीबी एवं बेरोजगारी की समस्या दूर करने में सहायक होते हैं । ये उद्योग आय की असमानता को कम करने, उद्योगों का अलग-अलग क्षेत्रों में विकास करने तथा अर्थव्यवस्था के अन्य क्षेत्रों से संयोजन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

→ लघु व्यवसाय की समस्याएँ:

  • पर्याप्त वित्त की अनुपलब्धता
  • कच्चे माल को प्राप्त करना
  • प्रबन्धकीय कौशल
  • प्रतिभाशाली लोगों का कम आकर्षित होना
  • विपणन सम्बधी समस्या
  • गुणवत्ता के वांछित मानकों का पालन नहीं करना
  • क्षमता का पूरा उपयोग नहीं करना
  • अप्रचलित तकनीकों का प्रयोग 
  • रुग्णता की व्यापकता
  • वैश्विक प्रतिस्पर्धा का सामना।

→ लघु व्यवसाय इकाइयों को सरकारी सहायता:
भारत सरकार ने अपनी नीतियों के माध्यम से लघु व्यवसाय क्षेत्र, विशेषतः ग्रामीण डद्योगों एवं पिछड़े क्षेत्रों में कुटीर व ग्रामीण उद्योगों की स्थापना, वृद्धि तथा विकास पर जोर दिया है।

→ लघु एवं ग्रामीण उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए लागू किये गये कुछ प्रोत्साहन व कार्यक्रम:

  • राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड)
  • ग्रामीण लघु व्यवसाय विकास केन्द्र (आर.एस.बी.डी.सी.)
  • राष्ट्रीय लघु उद्योग निगम (एन.एस.आई.सी.)
  • ग्रामीण एवं महिला उद्यमिता विकास (आर.डब्ल्यू.ई.डी.)
  • परम्परागत उद्योगों के पुनरुद्धार हेतु निधि की योजना (स्फूर्ति)
  • जिला उद्योग केन्द्र (डी.आई.सी.)।

→ उद्यमिता विकास:
किसी व्यक्ति द्वारा अपना व्यवसाय प्रारम्भ करने की प्रक्रिया उद्यमिता कहलाती है। जो व्यक्ति अपना व्यवसाय स्थापित करता है वह उद्यमी कहलाता है। इस प्रक्रिया के परिणाम को एक उपक्रम कहते हैं। उद्यमी को रोजगार उपलब्ध कराने के साथ-साथ उद्यमिता अन्य दोनों आर्थिक क्रियाओं, रोजगार व पेशा, को भी काफी हद तक सृजन तथा विस्तार के अवसर उपलब्ध कराती है।

→ उद्यमिता की विशेषताएँ:

  • सुव्यवस्थित क्रिय
  • वैध एवं उद्देश्यपूर्ण क्रिया
  • नवप्रवर्तन |
  • उत्पादन के साधनों का संगठन
  • जोखिम उठाना।

→ स्टार्ट अप इण्डिया योजना:
स्टार्ट अप इंडिया भारत सरकार की ऐसी सर्वोत्कृष्ट पहल है जो देश में नवप्रवर्तन तथा स्टार्ट अप को प्रोत्साहन देने हेतु एक मजबूत पारिस्थितिकी तंत्र को तराशने के उद्देश्य से शुरू की गई

→ स्टार्ट अप इण्डिया योजना के उद्देश्य:

  • उद्यमिता संस्कृति को बढ़ावा देना
  • युवाओं को उद्यमी बनाने के लिए जागरूक करना
  • अति सक्रिय स्टार्ट अप को प्रोत्साहित करना
  • उद्यमशीलता विकास के प्रारम्भिक चरण को बल देना
  • कम प्रतिनिधित्व वाले लाखों समूहों की विशिष्ट आवश्यकताओं को पूरा करके उद्यमों सम्बन्धी आपूर्ति का विस्तृत आकार देना।

→ स्टार्ट अप इण्डिया की शुरुआत-कार्यबिन्दु:

  • सरलीकरण एवं हस्तस्थ
  • स्टार्ट अप इण्डिया केन्द्र
  • कानूनी सहायता तथा स्वत्वाधिकार जांच को तेज करना
  • सरल बहिर्गमन
  • ऊष्मामित्र लगाने हेतु निजी क्षेत्र को साथ में लेना 
  • कर छूट।

→ निधि स्टार्ट अप के तरीके-

  • स्व-संसाधनों का प्रयोग करना 
  • जनता निधिकरण
  • दिव्य निवेशक
  • उपक्रम पूँजी
  • व्यवसाय ऊष्मामित्र तथा उत्प्रेरक
  • सूक्ष्मवित्त तथा गैर बैंकिंग वित्तीय निगम।

→ प्राज्ञ सम्पत्ति का अधिकार:
प्राज्ञ सम्पत्ति तो कोई व्यक्ति उसकी सुरक्षा हेतु भारत सरकार के सम्बन्धित प्राधिकरण को आवेदन जमा कर सकता है। ऐसे उत्पादों पर प्रदत्त कानूनी अधिकारों को 'प्राज्ञ सम्पत्ति अधिकार' कहते हैं। अतः प्राज्ञ सम्पत्ति का तात्पर्य मानवीय विचारों के उत्पादों से है, इसलिए सम्पत्तियों के अन्य प्रकारों की भाँति इनके स्वामी प्राज्ञ सम्पत्तियों को अन्य लोगों को किराये पर दे सकते हैं अथवा बेच सकते हैं। विशेष रूप से प्राज्ञ सम्पत्ति का तात्पर्य मानवीय विचारों से जन्मी रचनाओं से है। प्राज्ञ सम्पत्ति औद्योगिक सम्पत्ति तथा स्वत्वाधिकार के रूप में हो सकती है। भारत में जिन प्राज्ञ सम्पत्ति अधिकारों को मान्यता दी गई है वे हैं-स्वत्वाधिकार, व्यापार चिह्न, भौगोलिक संकेत, एकस्व अभिकल्प, पौध विविधता, अर्धचालक समाकलित परिपथ अभिन्यास अभिकल्प, परम्परागत ज्ञान तथा व्यापारिक भेद आदि।

→ उद्यमियों हेतु प्राज्ञ सम्पत्ति अधिकारों का महत्त्व:

यह नये पथ-खण्डन आविष्कारों, जैसे कैंसर उपचार औषधि की रचना को प्रोत्साहन देता है। यह आविष्कारों, लेखकों, रचयिताओं इत्यादि को उनके कार्य हेतु प्रोत्साहित करता है। इसके साथ ही यह लेखकों, रचयिताओं, विकासकों तथा स्वामियों को उनके कार्य हेतु पहचान उपलब्ध कराने में सहायता करता है।

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→ प्राज्ञ सम्पत्तियों के प्रकार:
प्राज्ञ सम्पत्तियों में निम्न तीन पहल आते हैं

  • कानून सम्बन्धी
  • प्रौद्योगिकी सम्बन्धी
  • व्यवसाय एवं अर्थशास्त्र सम्बन्धी

→ प्रतिलिप्याधिकार:
यह 'प्रतिलिपि न बनाने' का अधिकार है। प्रतिलिप्याधिकार रचयिता का एक विशेषाधिकार है जो विषय-सूची, जिसमें विषय सामग्री की प्रतियों का पुनरुत्पादन तथा वितरण सम्मिलित है, के अनाधिकृत प्रयोग को प्रतिषेध करता है।

→ व्यापार चिह्न:
व्यापार चिह्न कोई शब्द, नाम अथवा प्रतीक (अथवा उनका संयोजन) है जिसमें हम किसी व्यक्ति, कम्पनी संगठन इत्यादि द्वारा बनाये गये माल को पहचानते हैं। इनसे हम एक कम्पनी के माल को दूसरी कम्पनी के माल से अलग कर सकते हैं। व्यापार चिह्न परम्परागत तथा गैर-परम्परागत अर्थात् दो प्रकार के हो सकते 

→ भौगोलिक संकेत:
भौगोलिक संकेत मुख्यतः एक संकेत है जो कृषक, प्राकृतिक अथवा निर्मित उत्पादों (हस्तशिल्प, औद्योगिक माल तथा खाद्य पदार्थ) की एक निश्चित भू-भाग से उत्पत्ति की पहचान करता है, जहाँ एक निश्चित गुणवत्ता, प्रतिष्ठा अथवा अन्य विशेषताएँ अनिवार्य रूप से उसके भौगोलिक मूल के कारण हैं।

→ एकस्व:
एकस्व सरकार द्वारा प्रदान किया गया एक विशेषाधिकार है जो अन्य सभी का 'अपवर्जन करने का विशेष अधिकार' उपलब्ध कराता है और उन्हें इस खोज को निर्मित करने, प्रयुक्त करने, विक्रय हेतु प्रस्तुत करने, विक्रय करने अथवा आयात करने से प्रतिषेध करता है।

→ अभिकल्प:
अभिकल्प में आकृति, नमूना तथा पंक्तियों की व्यवस्था अथवा रंग संयोजन, जो किसी वस्तु पर अनुप्रयुक्त होता है, सम्मिलित है। यह कलात्मक प्रकटन अथवा ध्यान आकर्षित करने वाली विशेषताओं को दिया गया संरक्षण है।

→ पौध-प्रजाति:
पौध-प्रजाति अनिवार्य रूप से, पौधों का उनकी वानस्पतिक विशेषताओं के आधार पर श्रेणियों में समूहीकरण करना है। यह प्रजाति का एक प्रकार है जो कृषकों द्वारा उगाया तथा विकसित किया जाता है। यह पौधों के आनुवंशिक संसाधनों को संरक्षित करने, सुधारने तथा उपलब्ध कराने में सहायता करता है।

→ अर्द्धचालक एकीकृत परिपथ अभिन्यास अभिकल्प:
अर्द्धचालक, प्रत्येक कम्प्यूटर का एक अनिवार्य अंग है। कोई भी उत्पाद जिसमें ट्रांजिस्टर तथा अन्य विद्युत परिपथ तंत्र के रूप में प्रयुक्त किये गये हैं और वह अर्द्ध| चालक सामग्री पर, विद्युतरोधी सामग्री के रूप में अथवा अर्धचालक सामग्री के भीतर बना हो। इलेक्ट्रॉनिक विद्युत परिपथ तंत्र प्रकार्य को निष्पादित करने हेतु ही इसका अभिकल्प ऐसा है।

→ प्राज्ञ सम्पत्ति तथा व्यवसाय:
किसी भी व्यवसाय को निरन्तर नव प्रवर्तन तथा आगे के बारे में सोचना होता है, अन्यथा वह ऐसे ही निष्क्रिय तथा क्षीण हो जायेगा। दूसरों की प्राज्ञ सम्पत्तियों का सम्मान न केवल नैतिक आधार | पर बल्कि कानूनी आधार पर भी करना अनिवार्य है। अन्ततः दूसरों की प्राज्ञ सम्पत्ति के सम्मान से ही अपनी प्राज्ञ सम्पत्ति का मान होता है।

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