Class 11 Business Studies Chapter 2 जिसका नाम Forms of Business Organisation है इसमें व्यवसाय की विभिन्न संगठनों के बारे में बताया गया है
व्यवसाय संगठन का अर्थ व्यवसाय करने के विभिन्न स्वरूपों से है जिनमें लाभ हानि कार्य अवधि जोखिम दायित्व अलग-अलग होते हैं व्यवसाय संगठन को मुख्य रूप से 5 भागों में बांटा गया है नीचे इन संगठनों की सूची दी गई है
→ व्यावसायिक संगठन के विभिन्न स्वरूप निम्नलिखित हैं
- एकल स्वामित्व,
- संयुक्त हिन्दू परिवार व्यवसाय,
- साझेदारी,
- सहकारी समिति, तथा
- संयुक्त पूँजी कम्पनी।
→ एकल स्वामित्व
अर्थ: एकल स्वामित्व उस व्यवसाय को कहते हैं जिसका स्वामित्व, प्रबन्धन एवं नियन्त्रण एक ही व्यक्ति के हाथ में होता है तथा वही सम्पूर्ण लाभ पाने का अधिकारी तथा हानि के लिए उत्तरदायी होता है। यह उन क्षेत्रों में प्रचलन में है जिनमें व्यक्तिगत सेवाएँ प्रदान की जाती हैं।
विशेषताएँ/लक्षण:
- निर्माण एवं समापन आसान
- असीमित दायित्व
- अकेला ही लाभ प्राप्तकर्ता तथा जोखिम वहनकर्ता
- एकाकी नियन्त्रण
- स्वतन्त्र अस्तित्व नहीं
- व्यावसायिक निरन्तरता का अभाव।
गुण:
- शीघ्र निर्णय
- सूचना की गोपनीयता
- प्रत्यक्ष प्रोत्साहन
- उपलब्धि का एहसास होना
- स्थापित करने व बन्द करने में सुगमता।
सीमाएँ:
- सीमित संसाधनों का होना
- सीमित जीवन काल
- असीमित दायित्व
- सीमित प्रबन्ध योग्यता।
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→ संयुक्त हिन्दू परिवार व्यवसाय
अर्थ:
यह वह व्यवसाय होता है जिसका स्वामित्व एवं संचालन एक संयुक्त हिन्द परिवार के सदस्य करते हैं। इसका प्रशासन हिन्दू कानून के द्वारा होता है। व्यवसाय पर परिवार के मुखिया का ही नियन्त्रण रहता है और वही 'कर्ता' कहलाता है।
विशेषताएँ/लक्षण:
- परिवार के कम-से-कम दो सदस्यों द्वारा निर्माण
- दायित्व कर्ता का
- कर्ता का नियन्त्रण
- कर्ता की मृत्यु होने पर भी व्यवसाय में निरन्तरता का बने रहना
- नाबालिग भी व्यवसाय के सदस्य।
गुण:
- व्यापार पर प्रभावशाली नियन्त्रण
- स्थायित्व बने रहना
- सदस्यों का सीमित दायित्व
- परिवार में निष्ठा एवं सहयोग में वृद्धि।
सीमाएँ:
- सीमित साधन
- कर्ता का असीमित दायित्व
- कर्ता का प्रभुत्व होना
- सीमित प्रबन्ध कौशल।
→ साझेदारी
अर्थ:
साझेदारी एक ऐसा संगठन है जिसमें दो या दो से अधिक व्यक्ति मिलकर (अपने वित्तीय साधन व प्रबन्धकीय कुशलताओं के साथ) व्यवसाय करते हैं तथा लाभों को आपस में बराबर या पूर्व निश्चित अनुपात में बाँट लेते हैं। यह भारी पूँजी निवेश, विभिन्न प्रकार के कौशल एवं जोखिम में भागीदारी की आवश्यकताओं को पूरा करती
विशेषताएँ/लक्षण:
- स्थापना समझौते द्वारा
- दायित्व असीमित
- जोखिम वहन करना
- सर्वसम्मति से निर्णय लेना एवं साझेदारों द्वारा नियन्त्रण
- निरन्तरता का अभाव अर्थात् अस्थायी अस्तित्व
- कम-से-कम दो सदस्य तथा वर्तमान में अधिकतम 50 सदस्य
- प्रत्येक साझेदार एजेण्ट तथा स्वामी दोनों है
- एजेन्सी सम्बन्ध।
गुण या लाभ:
- स्थापना एवं समापन सरल
- सन्तुलित निर्णय सम्भव
- अधिक कोष
- जोखिम का विभाजन होना
- गोपनीयता का होना।
सीमाएँ:
- असीमित दायित्व
- सीमित साधनों का होना
- परस्पर विरोध की सम्भावना
- स्थायित्व एवं निरन्तरता नहीं
- जनसाधारण के विश्वास में कमी।।
साझेदारों के प्रकार:
साझेदारों के प्रमुख प्रकार इस प्रकार हैं
- सक्रिय साझेदार
- सुप्त अथवा निष्क्रिय साझेदार
- गुप्त साझेदार
- नाममात्र का साझेदार
- विबंधन साझेदार
- प्रतिनिधि साझेदार।
साझेदारी के प्रकार
(1) अवधि के आधार पर साझेदारी
- ऐच्छिक साझेदारी,
- विशिष्ट साझेदारी
(2) देयता के आधार पर साझेदारी
- सामान्य साझेदारी
- सीमित साझेदारी।
साझेदारी संलेख:
साझेदारों के बीच वह लिखित समझौता जो साझेदारी को शासित करने के लिए शर्तों व परिस्थितियों का उल्लेख करता है, साझेदारी संलेख कहलाता है।
फर्म का पंजीकरण:
साझेदारी फर्म का पंजीकरण कराना ऐच्छिक होता है किन्तु जिस फर्म का पंजीयन नहीं हुआ होता है वह कई लाभों से वंचित रह जाती है।
भारतीय साझेदारी अधिनियम, 1932 के अनुसार फर्म के साझेदार अपनी फर्म का उस राज्य के रजिस्ट्रार के पास पंजीयन करा सकते हैं जिस राज्य में वह स्थित है। फर्म के पंजीयन के लिए एक निश्चित प्रक्रिया अपनानी होती है।
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→ सहकारी संगठन
अर्थ:
सहकारी संगठन उन लोगों का स्वैच्छिक संगठन है जो अपने सदस्यों के कल्याण के लिए एकजुट हुए हैं। ये सदस्य अपने आर्थिक हितों की रक्षा से प्रेरित होते हैं।
विशेषताएँ /लक्षण:
- स्वैच्छिक सदस्यता
- पृथक् वैधानिक अस्तित्व
- सीमित दायित्व
- प्रजातान्त्रिक स्वरूप अथवा नियंत्रण
- सेवा-भावना।
गुण/लाभ:
- वोट की समानता
- सीमित दायित्व
- स्थायित्व
- मितव्ययी संचालन
- सरकारी सहायता
- सरल स्थापना ।
सीमाएँ:
- सीमित संसाधन
- असक्षम प्रबन्धन
- गोपनीयता का अभाव
- सरकारी नियन्त्रण का रहना
- परस्पर विचारों की भिन्नता।
सहकारी समितियों के प्रकार:
प्रचालन (संचालन) की प्रकृति के आधार पर सहकारी समितियों के प्रमुख प्रकार इस प्रकार हैं
- उपभोक्ता सहकारी समितियाँ
- उत्पादक सहकारी समितियाँ
- विपणन सहकारी समितियाँ
- कृषक सहकारी समितियाँ
- सहकारी ऋण समितियाँ
- सहकारी आवास समितियाँ।
→ संयुक्त पूँजी कम्पनी
अर्थ:
कम्पनी एक अदृश्य, अमूर्त कृत्रिम व्यक्तित्व वाली संस्था है जिसका पृथक् वैधानिक अस्तित्व, शाश्वत उत्तराधिकार एवं सार्वमुद्रा होती है। कम्पनी रूपी संगठन कम्पनी अधिनियम, 2013 द्वारा शासित होते हैं। इस अधिनियम की धारा 2(20) के अनुसार कम्पनी से आशय उन कम्पनियों से है जिनका समामेलन कम्पनी अधिनियम, 2013 में या इससे पूर्व के किसी कम्पनी अधिनियम के अन्तर्गत हुआ है।
विशेषताएँ या लक्षण:
- अदृश्य, अमूर्त कृत्रिम व्यक्ति
- पृथक् वैधानिक अस्तित्व
- स्थापना
- शाश्वत उत्तराधिकार
- प्रबन्ध एवं नियन्त्रण निदेशक मण्डल द्वारा
- सामान्यतः सीमित दायित्व
- सार्वमुद्रा
- अंशधारियों द्वारा जोखिम वहन करना।
लाभ या गुण:
- सीमित दायित्व का होना
- स्वामित्व हस्तान्तरण में सरलता
- स्थायी अस्तित्व
- विकास एवं विस्तार की सम्भावना
- पेशेवर प्रबन्ध ।
सीमाएँ:
- निर्माण में जटिलता
- गोपनीयता का अभाव
- अवैयक्तिक कार्य वातावरण
- अनेकानेक नियम या अत्यधिक कानूनी औपचारिकताएँ
- निर्णय में देरी
- अल्पतन्त्रीय प्रबन्ध
- विभिन्न हितों का टकराव।
कम्पनियों के प्रकार:
कम्पनियाँ दो प्रकार की हो सकती हैं
- निजी कम्पनी-निजी कम्पनी से अभिप्राय उस कम्पनी से है, जो अपने सदस्यों पर अंशों के हस्तान्तरण पर रोक लगाती है तथा जो पूँजी लगाने के लिए जनता को आमन्त्रित नहीं करती है। जिसमें न्यूनतम 2 और अधिकतम 200 सदस्य होते हैं।
- सार्वजनिक कम्पनी-एक सार्वजनिक कम्पनी वह कम्पनी है जो निजी कम्पनी नहीं है। जो अपनी अंशपूँजी के अभिदान के लिए जनता को आमन्त्रित कर सकती है तथा जनसाधारण से जमाएँ स्वीकार कर सकती है जिसमें अंश हस्तान्तरण पर कोई प्रबन्ध नहीं हो।
व्यावसायिक संगठन के स्वरूप का चयन:
व्यावसायिक संगठन के उचित स्वरूप का चयन निम्नलिखित महत्त्वपूर्ण घटकों पर निर्भर करता है
- व्यवसाय की प्रारम्भिक लागत
- दायित्व
- निरन्तरता
- प्रबन्धन की योग्यता निर्वाचित प्रबन्ध कमेटी द्वारा
- पूँजी की आवश्यकता
- नियन्त्रण
- व्यवसाय की प्रकृति।
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