आर्थिक क्रियाएं (Economic Activity) – इन क्रियाओं का संबंध उन कार्यों से है जिन्हें हम जीवन यापन के उद्देश्य से धन कमाने के लिए करते हैं इन क्रियाओं को प्रेम व सहानुभूति के लिए भावुकता वश नहीं किया जाता है इन्हें हम कुछ उदाहरणों से भी समझ सकते हैं जैसे डॉक्टर द्वारा व अध्यापक द्वारा अपनी सेवाएं प्रदान करना
गैर आर्थिक क्रियाएं (Non Economic Activity) – यह क्रियाएं आर्थिक क्रियाओं से बिल्कुल विपरीत होती हैं व इनका उद्देश्य धन कमाना नहीं होता है यह क्रिया जीविका उपार्जन के लिए की जाती है एक उदाहरण से भी समझ सकते हैं जैसे एक बालक के द्वारा रास्ते पर चल रहे वृद्ध व्यक्ति को सहायता प्रदान करना
व्यापार और वाणिज्य का इतिहास:
प्राचीनकाल में भारतीय अर्थव्यवस्था का प्रमुख आधार भूमिगत और सामुद्रिक अन्तर्देशीय व विदेशी व्यापार और वाणिज्य ही था। ईसा पूर्व तीसरी सहस्त्राब्दी में व्यापारिक केन्द्र भी आये, जिसके परिणामस्वरूप व्यापारियों और व्यापारिक समुदाय वाले भारतीय समाज का निर्माण हुआ। मुद्रा ने मापन की इकाई और विनिमय के माध्यम के रूप में काम किया, धात्विक मुद्रा की शुरुआत हुई और इसके उपयोग से आर्थिक गतिविधियों में तेजी आई ।Features of business
- यह एक आर्थिक क्रिया है जिसमें उत्पादन होता है
- यहां विक्रय वह हस्तांतरण भी किया जाता है
- यह लाभ व जीवन यापन आदि के लिए किया जाता है
→ व्यावसायिक क्रियाओं की विशेषताएँ
- व्यवसाय एक आर्थिक क्रिया है।
- व्यवसाय वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन अथवा उनकी प्राप्ति करता है।
- व्यवसाय में मानवीय आवश्यकताओं की सन्तुष्टि के लिए वस्तुओं और सेवाओं का विक्रय या विनिमय किया जाता है।
- व्यवसाय में नियमित रूप से वस्तुओं और सेवाओं का विनिमय होता है।
- उद्देश्य लाभ अर्जन करना।
- व्यवसाय में प्रतिफल (लाभ) की अनिश्चितता रहती है।
- व्यवसाय में जोखिम तत्त्व होता है।
→ व्यावसायिक क्रियाओं का वर्गीकरण-विभिन्न व्यावसायिक क्रियाओं को दो वर्गों में वर्गीकृत किया जा सकता है
- उद्योग,
- वाणिज्य।
(1) उद्योग-उद्योग से अभिप्राय उन आर्थिक क्रियाओं से है जिनका सम्बन्ध संसाधनों को उपयोगी वस्तुओं में परिवर्तन करना है। उद्योगों को तीन श्रेणियों में विभाजित किया जाता है
- प्राथमिक उद्योग-इन उद्योगों में वे सभी क्रियाएँ सम्मिलित हैं जिनका सम्बन्ध प्राकृतिक संसाधनों के खनन | एवं उत्पादन तथा पशु एवं वनस्पति के विकास से है। इसमें निष्कर्षण एवं जननिक उद्योग सम्मिलित हैं।
- द्वितीयक या माध्यमिक उद्योग-इन उद्योगों में खनन उद्योगों द्वारा निष्कर्षित माल को कच्चे माल के रूप में प्रयोग किया जाता है। इन उद्योगों द्वारा निर्मित माल या तो अन्तिम उपयोग के लिए काम में लिया जाता है या दूसरे उद्योगों में आगे की प्रक्रिया में उपयोग किया जाता है। माध्यमिक उद्योगों को विनिर्माण उद्योग जैसे विश्लेषणात्मक उद्योग, कृत्रिम उद्योग, प्रक्रियायी उद्योग, सम्मेलित उद्योग तथा निर्माण उद्योग में वर्गीकृत किया जा सकता है।
- तृतीयक या सेवा उद्योग-इस प्रकार के उद्योग प्राथमिक तथा द्वितीयक उद्योगों को सहायक सेवाएँ | उपलब्ध कराने में संलग्न होते हैं तथा व्यापारिक क्रिया-कलापों को सम्पन्न कराते हैं। व्यावसायिक क्रियाओं में, ये उद्योग वाणिज्य के सहायक अंग समझे जाते हैं।
व्यवसाय का उद्देश्य लाभ अर्जित करना है जो लागत पर आगम का आधिक्य है। लेकिन व्यवसाय को लम्बे समय तक चलते रहने के लिए लाभ अग्रणी उद्देश्य होता है, लेकिन एकमात्र नहीं। वर्तमान में एक अच्छे व्यवसाय के लिए केवल लाभ पर बल देना तथा दूसरे उद्देश्यों को भुला देना, खतरनाक साबित हो सकता है। व्यवसाय के बहुमुखी उद्देश्य होते हैं जिनकी आवश्यकता प्रत्येक उस क्षेत्र में होती है जो निष्पादन परिणाम, व्यवसाय के जीवन एवं समृद्धि को प्रभावित करते हैं । व्यवसाय के बहुमुखी उद्देश्य निम्न क्षेत्रों में वांछनीय हैं - बाजार स्थिति, नवप्रवर्तन, उत्पादकता, भौतिक एवं वित्तीय संसाधन, लाभार्जन, प्रबन्ध निष्पादन एवं विकास, कर्मचारी निष्पादन एवं मनोवृत्ति तथा सामाजिक उत्तरदायित्व।
→ व्यावसायिक जोखिम:
- व्यावसायिक जोखिम से आशय अपर्याप्त लाभ या हानि होने की उस सम्भावना से है जो नियन्त्रण से बाहर अनिश्चितताओं या आकस्मिक घटनाओं के कारण होती है।
- जोखिम दो प्रकार की हो सकती है - अनिश्चितता तथा शुद्ध अनिश्चितता जोखिमों में लाभ तथा हानि दोनों की सम्भावना बनी रहती है, जबकि शुद्ध जोखिमों में हानि होगी अथवा हानि नहीं होगी।
→ व्यावसायिक जोखिमों की प्रकृति (विशेषताएँ):
- व्यावसायिक जोखिमें अनिश्चितताओं के कारण होती। हैं;
- जोखिम प्रत्येक व्यवसाय का आवश्यक अंग होती है;
- जोखिम की मात्रा मुख्यतः व्यवसाय की प्रकृति एवं आकार पर निर्भर करती है;
- जोखिम उठाने का प्रतिफल लाभ होता है।
→ व्यावसायिक जोखिमों के कारण-व्यावसायिक जोखिमें अनेक कारणों से हो सकती हैं जैसे प्राकृतिक, मानवीय, आर्थिक एवं अन्य कारण।
→ व्यवसाय का आरम्भ-एक व्यवसायी को निम्नलिखित मूल घटकों को व्यवसाय प्रारम्भ करते समय ध्यान में| रखना चाहिए
- व्यवसाय के स्वरूप का चयन;
- फर्म का आकार;
- स्वामित्व के स्वरूप का चुनाव;
- उद्यम का स्थान;
- प्रस्थापन की वित्त व्यवस्था;
- भौतिक सुविधाएँ;
- संयन्त्र अभिन्यास;
- सक्षम एवं वचनबद्ध कामगार बल;
- कर सम्बन्धी योजना; तथा
- उद्यम प्रवर्तन।
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