Class 11 Business Studies Chapter 1 Notes

आर्थिक क्रियाएं (Economic Activity) – इन क्रियाओं का संबंध उन कार्यों से है जिन्हें हम जीवन यापन के उद्देश्य से धन कमाने के लिए करते हैं इन क्रियाओं को प्रेम व सहानुभूति के लिए भावुकता वश नहीं किया जाता है इन्हें हम कुछ उदाहरणों से भी समझ सकते हैं जैसे डॉक्टर द्वारा व अध्यापक द्वारा अपनी सेवाएं प्रदान करना

गैर आर्थिक क्रियाएं (Non Economic Activity) – यह क्रियाएं आर्थिक क्रियाओं से बिल्कुल विपरीत होती हैं व इनका उद्देश्य धन कमाना नहीं होता है यह क्रिया जीविका उपार्जन के लिए की जाती है एक उदाहरण से भी समझ सकते हैं जैसे एक बालक के द्वारा रास्ते पर चल रहे वृद्ध व्यक्ति को सहायता प्रदान करना

व्यवसाय (Business) – यह एक ऐसी आर्थिक क्रिया है जिसमें वस्तु या सेवाओं को बनाया जाता है व इसका उत्पादन किया जाता है इसका उद्देश्य लाभ कमाना है यहां पूंजी की आवश्यकता होती है                               
 पेशा (Profession) – यह एक ऐसी आर्थिक क्रिया है जिसमें एक विशेष क्षेत्र के ज्ञान की आवश्यकता होती है व यहां सेवाओं को उपलब्ध कराया जाता है
 रोजगार (Employment) – यह एक ऐसी आर्थिक क्रिया है जिसमें आप किसी दूसरे व्यक्ति के लिए कार्य करते हैं व इसके बदले में आपको कुछ लाभ या धन दिया जाता है


व्यापार और वाणिज्य का इतिहास:

प्राचीनकाल में भारतीय अर्थव्यवस्था का प्रमुख आधार भूमिगत और सामुद्रिक अन्तर्देशीय व विदेशी व्यापार और वाणिज्य ही था। ईसा पूर्व तीसरी सहस्त्राब्दी में व्यापारिक केन्द्र भी आये, जिसके परिणामस्वरूप व्यापारियों और व्यापारिक समुदाय वाले भारतीय समाज का निर्माण हुआ। मुद्रा ने मापन की इकाई और विनिमय के माध्यम के रूप में काम किया, धात्विक मुद्रा की शुरुआत हुई और इसके उपयोग से आर्थिक गतिविधियों में तेजी आई । 

स्वदेशी बैंकिंग प्रणाली ने मुद्रा उधार एवं साखपत्रों के माध्यम से घरेलू और विदेशी व्यापार के वित्त पोषण में महत्त्वपूर्ण योगदान किया। कृषि और पशुपालन प्राचीन लोगों के आर्थिक जीवन के महत्त्वपूर्ण घटक थे। उस समय सूती वस्त्रों की बुनाई, रंगाई, मिट्टी के बर्तन बनाना, कला और हस्तशिल्प, मूर्तिकला, कुटीर उद्योग, राजगीरी, यातायात-साधन आदि अतिरिक्त आय के साधन थे। प्रसिद्ध वर्कशाप (कारखाने) थे। व्यापार और वाणिज्य के वित्त पोषणं हेतु वाणिज्यिक और औद्योगिक बैंक बने, कृषि बैंक भी अस्तित्व में आये। व्यापार के विकास में मध्यस्थों की प्रमुख भूमिका रही। उन्होंने विदेशी व्यापार का जोखिम वहन करने का उत्तरदायित्व लेकर निर्माताओं को वित्तीय सुरक्षा प्रदान की।

Features of business

  1. यह एक आर्थिक क्रिया है जिसमें उत्पादन होता है
  2. यहां विक्रय वह हस्तांतरण भी किया जाता है
  3. यह लाभ व जीवन यापन आदि के लिए किया जाता है

→ व्यवसाय की प्रकृति और अवधारणा-सामान्य अर्थ में, व्यवसाय का अर्थ व्यस्त रहना है, जबकि विशेष सन्दर्भ में, व्यवसाय का अर्थ ऐसे किसी भी धन्धे से है, जिसमें लाभार्जन हेतु व्यक्ति विभिन्न प्रकार की क्रियाओं में नियमित रूप से संलग्न रहते हैं। वस्तुतः व्यवसाय से तात्पर्य उन आर्थिक क्रियाओं से है, जिनमें वस्तुओं का उत्पादन व विक्रय तथा सेवाओं को प्रदान करना सम्मिलित है। इन क्रियाओं का मुख्य उद्देश्य समाज में मनुष्यों की आवश्यकताओं की पर्ति करके धन कमाना है।

→ व्यावसायिक क्रियाओं की विशेषताएँ

  • व्यवसाय एक आर्थिक क्रिया है।
  • व्यवसाय वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन अथवा उनकी प्राप्ति करता है।
  • व्यवसाय में मानवीय आवश्यकताओं की सन्तुष्टि के लिए वस्तुओं और सेवाओं का विक्रय या विनिमय किया जाता है।
  • व्यवसाय में नियमित रूप से वस्तुओं और सेवाओं का विनिमय होता है।
  • उद्देश्य लाभ अर्जन करना।
  • व्यवसाय में प्रतिफल (लाभ) की अनिश्चितता रहती है।
  • व्यवसाय में जोखिम तत्त्व होता है।
→ व्यवसाय, पेशा तथा रोजगार में तुलना: व्यवसाय, पेशा तथा रोजगार में स्थापना की विधि, कार्य की प्रकृति, योग्यता, प्रतिफल, पूँजी निवेश, जोखिम, हित-हस्तान्तरण तथा आचार संहिता के आधार पर तुलना की जा सकती है।
व्यवसाय को प्रारंभ करने के लिए कई औपचारिकताओं का पालन करना होता है जिनमें व्यक्तिगत व पंजीयन औपचारिकताएं शामिल हैं वैसे मैं आपको बहुत कम औपचारिकताएं देखने को मिलती हैं यहां आपको एक संस्था के द्वारा प्रमाणित एक प्रमाण पत्र प्राप्त करना होता है यह आपकी कार्यकुशलता का प्रमाण होता है रोजगार में आपको एक नियुक्ति पत्र की आवश्यकता होती है और इसके बिना आप को रोजगार नहीं मिल सकता है

व्यवसाय में आप जनता को वस्तुएं या सेवाओं को उपलब्ध कराते हैं वह इसके माध्यम से धन का अर्जन करते हैं पेशे में एक विशेष ज्ञान की आवश्यकता होती है या आप जनता को व्यक्तिगत विशेषज्ञ सेवाओं को प्रदान करते हैं और धन कमाते हैं

→ व्यावसायिक क्रियाओं का वर्गीकरण-विभिन्न व्यावसायिक क्रियाओं को दो वर्गों में वर्गीकृत किया जा सकता है

  1. उद्योग,
  2. वाणिज्य।

(1) उद्योग-उद्योग से अभिप्राय उन आर्थिक क्रियाओं से है जिनका सम्बन्ध संसाधनों को उपयोगी वस्तुओं में परिवर्तन करना है। उद्योगों को तीन श्रेणियों में विभाजित किया जाता है

  • प्राथमिक उद्योग-इन उद्योगों में वे सभी क्रियाएँ सम्मिलित हैं जिनका सम्बन्ध प्राकृतिक संसाधनों के खनन | एवं उत्पादन तथा पशु एवं वनस्पति के विकास से है। इसमें निष्कर्षण एवं जननिक उद्योग सम्मिलित हैं।
  • द्वितीयक या माध्यमिक उद्योग-इन उद्योगों में खनन उद्योगों द्वारा निष्कर्षित माल को कच्चे माल के रूप में प्रयोग किया जाता है। इन उद्योगों द्वारा निर्मित माल या तो अन्तिम उपयोग के लिए काम में लिया जाता है या दूसरे उद्योगों में आगे की प्रक्रिया में उपयोग किया जाता है। माध्यमिक उद्योगों को विनिर्माण उद्योग जैसे विश्लेषणात्मक उद्योग, कृत्रिम उद्योग, प्रक्रियायी उद्योग, सम्मेलित उद्योग तथा निर्माण उद्योग में वर्गीकृत किया जा सकता है।
  • तृतीयक या सेवा उद्योग-इस प्रकार के उद्योग प्राथमिक तथा द्वितीयक उद्योगों को सहायक सेवाएँ | उपलब्ध कराने में संलग्न होते हैं तथा व्यापारिक क्रिया-कलापों को सम्पन्न कराते हैं। व्यावसायिक क्रियाओं में, ये उद्योग वाणिज्य के सहायक अंग समझे जाते हैं।
(2) वाणिज्य: वाणिज्य में वे सभी क्रियाएँ सम्मिलित हैं जिनके द्वारा माल अथवा सेवा को सही व्यक्ति के पास, सही स्थान, सही समय, सही मूल्य पर, सही मात्रा तथा सही दशा में पहुँचाने का वैध कार्य पूरा किया जाता है। वाणिज्य में दो प्रकार की क्रियाएँ सम्मिलित हैं व्यापार तथा व्यापार की सहायक क्रियाएँ। व्यापार का अर्थ वस्तुओं की बिक्री, हस्तान्तरण अथवा विनिमय से है। व्यापार आन्तरिक (देशीय) तथा बाह्य (विदेशी) हो सकता है। आन्तरिक व्यापार थोक व्यापार व फुटकर व्यापार में वर्गीकृत किया जा सकता है जबकि बाह्य (विदेशी) व्यापार आयात व्यापार, निर्यात व्यापार तथा पुनर्निर्यात व्यापार के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है। व्यापार की सहायक क्रियाएँ वे क्रियाएँ होती हैं जो व्यापार को सहायता प्रदान करती हैं। इन सहायक क्रियाओं में परिवहन एवं संचार, बैंकिंग एवं वित्त, बीमा, भण्डारण, विज्ञापन आदि को सम्मिलित किया जा सकता है। इन क्रियाओं को सेवाएँ भी कहते हैं।

→ व्यवसाय के उद्देश्य:
व्यवसाय का उद्देश्य लाभ अर्जित करना है जो लागत पर आगम का आधिक्य है। लेकिन व्यवसाय को लम्बे समय तक चलते रहने के लिए लाभ अग्रणी उद्देश्य होता है, लेकिन एकमात्र नहीं। वर्तमान में एक अच्छे व्यवसाय के लिए केवल लाभ पर बल देना तथा दूसरे उद्देश्यों को भुला देना, खतरनाक साबित हो सकता है। व्यवसाय के बहुमुखी उद्देश्य होते हैं जिनकी आवश्यकता प्रत्येक उस क्षेत्र में होती है जो निष्पादन परिणाम, व्यवसाय के जीवन एवं समृद्धि को प्रभावित करते हैं । व्यवसाय के बहुमुखी उद्देश्य निम्न क्षेत्रों में वांछनीय हैं - बाजार स्थिति, नवप्रवर्तन, उत्पादकता, भौतिक एवं वित्तीय संसाधन, लाभार्जन, प्रबन्ध निष्पादन एवं विकास, कर्मचारी निष्पादन एवं मनोवृत्ति तथा सामाजिक उत्तरदायित्व।

→ व्यावसायिक जोखिम:

  • व्यावसायिक जोखिम से आशय अपर्याप्त लाभ या हानि होने की उस सम्भावना से है जो नियन्त्रण से बाहर अनिश्चितताओं या आकस्मिक घटनाओं के कारण होती है।
  • जोखिम दो प्रकार की हो सकती है - अनिश्चितता तथा शुद्ध अनिश्चितता जोखिमों में लाभ तथा हानि दोनों की सम्भावना बनी रहती है, जबकि शुद्ध जोखिमों में हानि होगी अथवा हानि नहीं होगी।

→ व्यावसायिक जोखिमों की प्रकृति (विशेषताएँ):

  • व्यावसायिक जोखिमें अनिश्चितताओं के कारण होती। हैं;
  • जोखिम प्रत्येक व्यवसाय का आवश्यक अंग होती है;
  • जोखिम की मात्रा मुख्यतः व्यवसाय की प्रकृति एवं आकार पर निर्भर करती है;
  • जोखिम उठाने का प्रतिफल लाभ होता है।

→ व्यावसायिक जोखिमों के कारण-व्यावसायिक जोखिमें अनेक कारणों से हो सकती हैं जैसे प्राकृतिक, मानवीय, आर्थिक एवं अन्य कारण।

→ व्यवसाय का आरम्भ-एक व्यवसायी को निम्नलिखित मूल घटकों को व्यवसाय प्रारम्भ करते समय ध्यान में| रखना चाहिए

  • व्यवसाय के स्वरूप का चयन;
  • फर्म का आकार;
  • स्वामित्व के स्वरूप का चुनाव;
  • उद्यम का स्थान;
  • प्रस्थापन की वित्त व्यवस्था;
  • भौतिक सुविधाएँ; 
  • संयन्त्र अभिन्यास; 
  • सक्षम एवं वचनबद्ध कामगार बल; 
  • कर सम्बन्धी योजना; तथा 
  • उद्यम प्रवर्तन।

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