Class 11 Business Studies Chapter 4 Notes व्यावसायिक सेवाएँ

 Class 11 Business Studies Chapter 4 जिसका नाम Business Services है इसमें सेवाओं के बारे में बताया गया है जो कि व्यवसाई क्रियाओं से संबंधित होती हैं


→ सेवा का अर्थ:
सेवाएँ वे आर्थिक क्रियाएँ हैं जिनको अलग से पहचाना जा सकता है, जो अमूर्त हैं, जो आवश्यकताओं की सन्तुष्टि करती हैं, यह आवश्यक नहीं है कि वे किसी उत्पाद अथवा अन्य सेवा के विक्रय से जुड़ी हों।

→ वस्तु का अर्थ:
वस्तु एक भौतिक पदार्थ है जिसकी क्रेता को सुपुर्दगी दी जा सकती है तथा जिसके स्वामित्व का विक्रेता से क्रेता को हस्तान्तरण हो सकता है। वस्तुतः वस्तुओं से अभिप्राय सेवाओं को छोड़कर उन समस्त प्रकार के पदार्थों एवं वस्तुओं से है जिनमें व्यापार एवं वाणिज्य होता है।

→ सेवाओं की प्रकृति:
सेवाओं की प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं

  • अमूर्त,
  • असंगतता या एकरूपता का नहीं होना,
  • अभिन्नता,
  • स्टॉक करना सम्भव नहीं,
  • सम्बद्धता।

→ सेवा एवं वस्तुओं में अन्तर:
सेवा का हस्तान्तरण सम्भव नहीं है, जबकि वस्तु का हस्तान्तरण किया जा सकता है। सेवा प्रदान करने वाले एवं सेवा लेने वाले अर्थात् दोनों की मौजूदगी होनी चाहिए। वस्तुओं का उत्पादन किया जाता है, जबकि सेवाओं को प्रदान किया जाता है। सेवा एक क्रिया है जिसे घर नहीं ले जाया जा सकता है। उसके प्रभाव को ही घर ले जाया जा सकता है। सेवा का स्टॉक भी नहीं किया जा सकता है जबकि वस्तुओं का स्टॉक किया जा सकता है।

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→ सेवाओं के प्रकार:

  • व्यावसायिक सेवाएँ,
  • सामाजिक सेवाएँ,
  • व्यक्तिगत सेवाएँ।

→ बैंकिंग:
भारत में एक बैंकिंग कम्पनी वह है जो बैंकिंग का व्यापार करती है। यह ऋण देती है तथा जनता से ऐसी जमा स्वीकार करती है जिन्हें माँगने पर अथवा अन्य किसी समय पर भुगतान करना होता है तथा जिन्हें ग्राहक चैक, ड्राफ्ट, ऑर्डर या अन्य किसी माध्यम से निकाल सकते हैं।
बैंक लोगों से जमा के रूप में धन या उनकी बचत को स्वीकार करते हैं तथा यह व्यवसाय को उसकी पूँजीगत एवं आयगत व्ययों के लिए धन उपलब्ध कराता है। यह वित्तीय विलेखों में लेन-देन के साथ ही वित्तीय सेवाएँ प्रदान करते हैं जिसके बदले में ब्याज, छूट, कमीशन आदि प्राप्त करते हैं।

→ बैंकों के प्रकार:

  • वाणिज्यिक बैंक,
  • सहकारी बैंक,
  • विशिष्ट बैंक,
  • केन्द्रीय बैंक।

→ वाणिज्यिक बैंक के कार्य:

  • जमा स्वीकार करना,
  • ऋण देना,
  • चैक सुविधा प्रदान करना,
  • धन का हस्तान्तरण करना,
  • सहयोगी सेवाएं प्रदान करना।

→ ई-बैंकिंग:

  • इन्टरनेट पर बैंकों की सेवाएं प्रदान करने को ई-बैंकिंग कहते हैं। अन्य शब्दों में, ई-बैंकिंग बैंकों द्वारा प्रदान की जाने वाली वह सेवा है जो ग्राहक को अपनी बचतों के प्रबन्धन, खातों का निरीक्षण, ऋण के लिए आवेदन करना, बिलों का भुगतान करना जैसे बैंक सम्बन्धी लेन-देनों को इन्टरनेट पर करने की सुविधा देता है। इसमें | ग्राहक निजी कम्प्यूटर, मोबाइल, टेलीफोन या फिर हाथ के कम्प्यूटर का प्रयोग करता है।
  • ई-बैंकिंग जिन विभिन्न सेवाओं को प्रदान करता है वे हैं- इलेक्ट्रॉनिक कोष हस्तान्तरण (ई.एफ.टी.); स्वचालित टैलर मशीन (ए.टी.एम.) एवं विक्रय बिन्दु (पी.ओ.एस.), इलेक्ट्रॉनिक डेटा इन्टरचेंज (ई.ई.आई.), क्रेडिट कार्ड, इलेक्ट्रॉनिक या डिजीटल रोकड़, इलेक्ट्रोनिक कोष हस्तान्तरण (ई.एफ.टी.)।

→ बीमा:
बीमा एक ऐसा प्रसंविदा या समझौता है जिसके अन्तर्गत एक पक्षकार दूसरे पक्षकार को एक निश्चित प्रतिफल के बदले में एक तयशुदा राशि देता है ताकि दुर्घटनावश हुई बीमाकृत वस्तु की हानि, क्षति अथवा चोट से हए नुकसान की भरपायी की जा सके। यह प्रसंविदा या समझौता लिखित में होता है तथा इसे बीमा-पत्र (पॉलिसी) कहते हैं। जिस व्यक्ति की जोखिम का बीमा किया जाता है उसे बीमित कहते हैं तथा जो व्यक्ति अथवा फर्म या संस्था बीमा करती है उसे बीमाकर्ता या बीमाकार या बीमा अभिगोपनकर्ता कहते हैं।

→ बीमा का आधारभूत सिद्धान्त-बीमा का आधारभूत सिद्धान्त है कि एक व्यक्ति या व्यावसायिक इकाई भविष्य की अनिश्चित हानि की भारी राशि के बदले एक पूर्व निर्धारित राशि खर्च करने को तैयार हो जाती है। बीमा वस्तुतः एक प्रकार से जोखिम का प्रबन्धन है, जिसका उपयोग मूलतः सम्भावित वित्तीय हानि की जोखिम के विरुद्ध सुरक्षा के लिए किया जाता है। बीमा का उद्देश्य बीमाकृत को उन अनिश्चित घटनाओं से सुरक्षा प्रदान करना है जिनसे उसे हानि हो सकती है।

→ बीमा के कार्य:

  • निश्चितता प्रदान करना,
  • हानि के सम्भावित अवसरों से सुरक्षा प्रदान करना,
  • जोखिम को बाँटना,
  • पूँजी निर्माण में सहायता करना।

→ बीमा के सिद्धान्त:

  • पूर्ण सद्विश्वास का सिद्धान्त,
  • बीमायोग्य हित का सिद्धान्त,
  • क्षतिपूर्ति का सिद्धान्त,
  • निकटतम कारण का सिद्धान्त,
  • अधिकार समर्पण का सिद्धान्त,
  • योगदान का सिद्धान्त,
  • हानि को कम करने का सिद्धान्त। 

→ बीमा के प्रकार:
“जीवन बीमा:
जीवन बीमा एक ऐसा अनुबन्ध है जिसके अन्तर्गत बीमाकार, प्रीमियम की इकट्ठा राशि अथवा समय-समय पर भुगतान की गई राशि के बदले में बीमाकृत को अथवा उस व्यक्ति को जिसके हित में यह बीमा-पत्र लिया गया है, मनुष्य के जीवन से सम्बन्धित अनिश्चित घटना के घटित होने पर अथवा एक अवधि की समाप्ति पर बीमित राशि का भुगतान करने का समझौता करता है। 
समझौता या प्रसंविदा जिसमें सभी शर्ते लिखी हुई हों, उसे बीमापत्र कहते हैं । जिस व्यक्ति के जीवन का बीमा किया गया है उसे बीमित या बीमाकृत, बीमा कर्ता को बीमाकार या बीमा कम्पनी एवं बीमित द्वारा दिये गये प्रतिफल को प्रीमियम कहते हैं। इस प्रीमियम का भुगतान एकमुश्त या नियत अवधि पर किश्तों में भुगतान किया जा सकता है।

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→ जीवन बीमा के आवश्यक तत्त्व:

  • एक वैध अनुबन्ध,
  • सद्विश्वास पर आधारित,
  • बीमा योग्य हित का होना,
  • क्षतिपूर्ति का अनुबन्ध नहीं।

→ जीवन बीमा के प्रकार:

  • आजीवन बीमा पॉलिसी
  • बन्दोबस्ती जीवन बीमा पॉलिसी
  • संयुक्त बीमा पॉलिसी
  • वार्षिक वृत्ति पॉलिसी
  • बच्चों की बन्दोबस्ती पॉलिसी।

→ अग्नि बीमा:
यह एक ऐसा प्रसंविदा है जिसमें बीमाकार प्रीमियम के प्रतिफल के बदले बीमा-पत्र में वर्णित राशि तक एक निर्धारित अवधि के दौरान अग्नि से होने वाली क्षति की पूर्ति का दायित्व अपने ऊपर लेता है। सामान्यतः यह एक वर्ष के लिए होता है जिसका प्रतिवर्ष नवीनीकरण कराना होता है। प्रीमियम एक मुश्त या किश्तों में दिया जा सकता है।

→ अग्नि बीमा के प्रमुख तत्त्व:

  • बीमित का बीमा में बीमा योग्य हित होना
  • एक वैध अनुबन्ध
  • पूर्ण सद्विश्वास पर आधारित
  • क्षतिपूर्ति का अनुबन्ध
  • क्षति का निकटतम कारण होना।

→ सामुद्रिक बीमा:
सामुद्रिक बीमा एक ऐसा प्रसंविदा (अनुबन्ध) है जिसके अन्तर्गत बीमाकार समुद्री जोखिमों के विरुद्ध तय रीति से एवं पूर्व निश्चित राशि तक बीमित को क्षतिपूर्ति का वादा करता है। यह बीमा समुद्र मार्ग से यात्रा एवं समुद्री जोखिमों से सुरक्षा प्रदान करता है।

→ सामुद्रिक बीमा का क्षेत्र:
सामुद्रिक बीमा में सम्मिलित हैं-जहाज का बीमा, माल का बीमा, भाड़ा बीमा।

→ सामुद्रिक बीमा के आवश्यक तत्त्व:
सामुद्रिक बीमा में सम्मिलित है

  • एक क्षतिपूर्ति का प्रसंविदा
  • पूर्ण सद्विश्वास पर आधारित
  • हानि के समय बीमायोग्य हित का होना
  • हानि निकटतम कारण से।

→ सम्प्रेषण सेवाएँ:
सम्प्रेषण सेवाएँ वे सेवाएँ हैं जो व्यावसायिक इकाई के बाह्य जगत से सम्पर्क में सहायक होती हैं। इनमें आपूर्तिकर्ता, ग्राहक, प्रतियोगी आदि शामिल हैं।

→ व्यवसाय की सहायक मुख्य सेवाएँ:

  1. डाक सेवाएँ
  2. दूरसंचार सेवाएँ।

1. डाक सेवाएँ-भारतीय डाक एवं तार विभाग पूरे भारत में विभिन्न डाक सेवाएँ प्रदान करता है। डाक विभाग द्वारा प्रदत्त सुविधाओं को निम्न वर्गों में बाँटा जा सकता है

  • वित्तीय सुविधाएँ-ये सुविधाएँ डाक-घर की विभिन्न बचत योजनाओं के माध्यम से उपलब्ध करायी जाती हैं।
  • डाक सुविधाएँ-डाक सुविधाएँ जैसे पार्सल सेवा, रजिस्ट्री की सुविधा तथा बीमा सेवा व अन्य सहायक सुविधाएँ।

2. टेलीकॉम सेवाएँ:

  • सैल्यूलर मोबाइल सेवाएँ,
  • स्थायी लाइन सेवाएँ, 
  • के बल/तार सेवाएँ,
  • वी.एस.ए.टी. सेवाएँ (वेरी स्माल अपरचर टर्मिनल), डी.टी.एच. सेवाएँ (डायरेक्ट टू होम)।

→ परिवहन:
परिवहन में भाड़ा आधारित सेवाएँ एवं उनकी समर्थक एवं सहायक सेवाएँ सम्मिलित हैं, जो परिवहन के सभी साधनों अर्थात् रेल, सड़क एवं समुद्र के द्वारा माल एवं यात्रियों को ढोने से सम्बन्धित हैं । यथार्थ में परिवहन स्थान सम्बन्धित बाधा को दूर करता है अर्थात् यह वस्तुओं को उत्पादन स्थल से उपभोक्ताओं तक पहुँचाता

→ भण्डारण:
भण्डारण को प्रारम्भ में वस्तुओं को वैज्ञानिक ढंग से एवं रीति से सुरक्षित रखने एवं संग्रहण की एक स्थिर इकाई के रूप में माना जाता था। इससे इनकी मौलिक गुणवत्ता, कीमत एवं उपयोगिता बनी रहती थी। आज इसकी भूमिका मात्र संग्रहण सेवा प्रदान करने की नहीं रही है बल्कि ये कम कीमत पर भण्डारण एवं वहाँ से वितरण की सेवा भी उपलब्ध कराते हैं अर्थात् ये अब सही मात्रा में, सही स्थान पर, सही समय पर, सही स्थिति में, सही लागत पर माल को उपलब्ध कराने में सहायक होते हैं।

→ भण्डार-गृह के प्रकार:

  • निजी भण्डार-गृह
  • सार्वजनिक भण्डार-गृह
  • बन्धक माल गोदाम
  • सरकारी भण्डार-गृह
  • सहकारी भण्डार-गृह।

→ भण्डार-गृहों के कार्य:

  • वस्तुओं व माल का संचयन
  • भारी मात्रा का विघटन
  • संग्रहित स्टॉक
  • मूल्य-वर्द्धन सेवाएँ
  • मूल्यों में स्थिरता
  • वित्तीयन।

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