Class 11 Business Studies Chapter 11 Notes अंतर्राष्ट्रीय व्यापार

 → आज विभिन्न देशों को विभिन्न वस्तुओं एवं सेवाओं के एकत्रीकरण एवं आपूर्ति के लिए अधिक से अधिक दूसरों पर आश्रित होना पड़ रहा है। अपने देश की सीमाओं के पार व्यापार एवं विनियोग के बढ़ने के कारण अब देश अकेले नहीं रह गये हैं। इस परिवर्तन का मुख्य कारण सम्प्रेषण तकनीक, आधारगत ढाँचा आदि के क्षेत्र में विकास है।

नयेनये सम्प्रेषण के माध्यम एवं परिवहन के तीव्र एवं अधिक सक्षम साधनों के विकास ने विभिन्न देशों को एक-दूसरे के नजदीक ला दिया है। विश्व व्यापार संघ एवं विभिन्न देशों की सरकारों के प्रयासों से भी ऐसा सम्भव हुआ है। आज पूरी दुनिया एक भूमण्डलीय गाँव में बदल गई है। आज के युग में व्यवसाय किसी एक देश की सीमाओं तक सीमित नहीं रह गया है। अधिक से अधिक व्यावसायिक इकाइयाँ आज अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में प्रवेश कर रही हैं । जहाँ उन्हें विकास एवं लाभ के अधिक अवसर प्राप्त हो रहे हैं। 

→ भारत सदियों से अन्य देशों से व्यापार करता रहा है। लेकिन विगत कुछ वर्षों से इसने विश्व अर्थव्यवस्था में समाहित होने एवं अपने विदेशी व्यापार एवं निवेश में वृद्धि की प्रक्रिया को गति प्रदान की है।

→ अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार/व्यवसाय का अर्थ:
जब कोई देश अपनी सीमाओं से बाहर विनिर्माण एवं व्यापार करता है तो उसे अन्तर्राष्ट्रीय व्यवसाय कहते हैं। वस्तुतः यह वह व्यावसायिक क्रिया है, जो राष्ट्र की सीमाओं के पार की जाती है। इसमें न केवल वस्तुओं एवं सेवाओं का व्यापार वरन् पूँजी, व्यक्ति, तकनीक, बौद्धिक सम्पत्ति जैसेपेटेण्ट्स, ट्रेडमार्क, ज्ञान एवं कॉपीराइट का आदान-प्रदान भी शामिल हैं। वस्तुतः अन्तर्राष्ट्रीय व्यवसाय एक व्यापक शब्द है, जो विदेशों से व्यापार एवं वहाँ वस्तु एवं सेवाओं के उत्पादन से मिलकर बना है।


→ अन्तर्राष्ट्रीय व्यवसाय के कारण:
अन्तर्राष्ट्रीय व्यवसाय का आधारभूत कारण है कि देश अपनी आवश्यकता की वस्तुओं का भली प्रकार से एवं सस्ते मूल्य पर उत्पादन नहीं कर सकते। इसका कारण उनके बीच प्राकृतिक संसाधनों का असमान वितरण अथवा उनकी उत्पादकता में अन्तर हो सकता है जैसे

→ विभिन्न राष्ट्रों में श्रम की उत्पादकता एवं उत्पादन लागत में भिन्नता, विभिन्न सामाजिक:
आर्थिक, भौगोलिक एवं राजनीतिक कारणों से होती है। इन्हीं कारणों से यह कोई असाधारण बात नहीं है कि कोई एक देश अन्य देशों की तुलना में श्रेष्ठ गुणवत्ता वाली वस्तुओं एवं कम लागत पर उत्पादन की स्थिति में हो। कुछ देश कुछ चुनिन्दा वस्तुओं एवं सेवाओं के लाभ में उत्पादन करने की स्थिति में होते हैं जबकि कुछ देश नहीं। इसी कारण से प्रत्येक देश के लिए उन वस्तुओं एवं सेवाओं का उत्पादन करना अधिक लाभप्रद रहता है, जिनका वे अधिक कुशलतापूर्वक उत्पादन कर सकते हैं तथा शेष वस्तुओं का वह व्यापार के माध्यम से उनके देशों से ले सकते हैं जो उन वस्तुओं का उत्पादन कम लागत पर कर सकते हैं। संक्षेप में किसी एक देश का दूसरे देश से व्यापार का यही कारण है।

→ अन्तर्राष्ट्रीय व्यवसाय बनाम घरेलू व्यवसाय:
अन्तर्राष्ट्रीय व्यवसाय तथा घरेलू व्यवसाय में विभिन्न पहलुओं पर अन्तर इस आधार पर किया जा सकता है

  • क्रेता एवं विक्रेताओं की राष्ट्रीयता,
  • अन्य हितार्थियों की राष्ट्रीयता,
  • उत्पादन के साधनों में गतिशीलता,
  • विदेशी बाजारों में ग्राहक,
  • व्यवसाय पद्धतियाँ एवं आचरण में अन्तर,
  • राजनीतिक प्रणाली एवं जोखिमें,
  • व्यवसाय के नियम एवं नीतियाँ,
  • व्यावसायिक लेन-देनों के लिए प्रयुक्त मुद्रा।

→ अन्तर्राष्ट्रीय व्यवसाय के क्षेत्र:
अन्तर्राष्ट्रीय व्यवसाय की प्रमुख क्रियाएँ इस प्रकार हैं

  • वस्तुओं का आयात एवं निर्यात,
  • सेवाओं का आयात एवं निर्यात,
  • लाइसेंस एवं फ्रेंचाइजी,
  • विदेशी निवेश।

→ अन्तर्राष्ट्रीय व्यवसाय के लाभ:
(1) राष्ट्रों को लाभ

  • विदेशी मुद्रा का अर्जन
  • संसाधनों का अधिक क्षमता से उपयोग
  • विकास की सम्भावनाओं एवं रोजगार के अवसरों में सुधार
  • जीवन स्तर में वृद्धि।

(2) फर्मों को लाभ:

  • उच्च लाभ की सम्भावनाएँ,
  • बढ़ी हुई क्षमता का उपयोग,
  • विकास की सम्भावनाएँ,
  • आन्तरिक बाजार में घोर प्रतियोगिता से बचाव,
  • व्यावसायिक दृष्टिकोण।

→ अन्तर्राष्ट्रीय व्यवसाय में प्रवेश की विधियाँ-

  • आयात एवं निर्यात द्वारा, 
  • संविदा विनिर्माण द्वारा,
  • अनुज्ञाप्ति लाइसेंस एवं मताधिकारी द्वारा,
  • संयुक्त उपक्रम द्वारा, 
  • सम्पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक इकाइयाँ/कम्पनियाँ।

→ आयात-निर्यात प्रक्रिया:
निर्यात प्रक्रिया:
निर्यात प्रक्रिया के प्रमुख चरण इस प्रकार हैं

  • पूछताछ प्राप्त करना एवं निर्ख भेजना
  • आदेश अथवा इंडेंट की प्राप्ति
  • आयातक की साख का आंकलन एवं भुगतान की गारण्टी प्राप्त करना
  • निर्यात लाइसेंस प्राप्त करना
  • माल प्रेषण से पूर्व वित्त की व्यवस्था करना
  • वस्तुओं का उत्पादन एवं अधिप्राप्ति
  • जहाज लदान निरीक्षण
  • उत्पाद शुल्क की निकासी
  • उद्गम प्रमाण-पत्र प्राप्त करना
  • जहाज में स्थान का आरक्षण करना
  • पैकिंग एवं माल को भेजना
  • वस्तुओं का बीमा
  • कस्टम निकासी
  • जहाज के कप्तान की रसीद (मेट्स रसीद) प्राप्त करना
  • भाड़े का भुगतान एवं जहाजी बिल्टी का बीमा
  • बीजक बनाना
  • भुगतान प्राप्त करना।

→ आयात प्रक्रिया:
आयात प्रक्रिया के प्रमुख चरण इस प्रकार हैं

  • व्यापारिक पूछताछ,
  • आयात लाइसेंस प्राप्त करना,
  • विदेशी मुद्रा का प्रबन्ध करना,
  • आदेश अथवा इंडेंट भेजना,
  • साख-पत्र प्राप्त करना,
  • वित्त की व्यवस्था करना,
  • जहाज से माल भेज दिये जाने की सूचना की प्राप्ति,
  • आयात प्रलेखों को छुड़ाना,
  • माल का आगमन,
  • सीमा शुल्क निकासी एवं माल को छुड़ाना।

→ विदेशी व्यापार प्रोन्नति प्रोत्साहन एवं संगठनात्मक समर्थन:
समय-समय पर सरकार के अन्तर्राष्ट्रीय व्यवसाय में संलग्न फर्मों के विपणन में सहायता एवं बुनियादी ढाँचागत समर्थन प्रदान करने के लिए संगठन स्थापित किये हैं।

→ विदेशी व्यापार प्रोन्नति विधियाँ एवं योजनाएँ:
वर्तमान में प्रचलित प्रमुख व्यापार प्रोन्नति उपाय (विशेषतः निर्यात से सम्बन्धित) इस प्रकार हैं

  • शुल्क वापसी योजना
  • बॉण्ड योजना के अन्तर्गत निर्यात हेतु विनिर्माण
  • बिक्री कर के भुगतान से छूट
  • अग्रिम लाइसेंस योजना
  • निर्यात संवर्द्धन पूँजीगत वस्तुएँ योजना
  • निर्यात फर्मों को निर्यात गृह एवं सुपर स्टार व्यापार गृहों के रूप में मान्यता देने की योजना
  • निर्यात सेवाएँ
  • निर्यात वित्त
  • निर्यात प्रवर्तन क्षेत्र
  • 100 प्रतिशत निर्यातपरक इकाइयाँ ।

→ संगठन समर्थन:
भारत सरकार ने हमारे देश में विदेशी व्यापार की प्रक्रिया को सुविधाजनक बनाने के लिए। जिन संस्थानों की स्थापना की है, उनमें से कुछ प्रमुख इस प्रकार हैं

  • वाणिज्य विभाग,
  • निर्यात प्रोन्नति परिषद् (ई.पी.सी.),
  • सामग्री बोर्ड,
  • निर्यात निरीक्षण परिषद् (ई.आई.सी.),
  • भारतीय व्यापार प्रोन्नति संगठन (आई.टी.पी.ओ.)
  • भारतीय विदेशी व्यापार संस्थान
  • भारतीय पैकेजिंग संस्थान (आई.आई.पी.)
  • राज्य व्यापार संगठन (एस.टी.सी.)।

→ अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार संस्थान एवं व्यापार समझौते:
प्रथम विश्वयुद्ध (1914-18) एवं द्वितीय विश्वयुद्ध (193945) के पश्चात् पूरे विश्व में जीवन एवं सम्पत्ति की तबाही हुई। ऐसी स्थिति में 44 देशों के प्रतिनिधि प्रसिद्ध अर्थशास्त्री जे.एस. कीन्स की अगुवाई में विश्व में शान्ति एवं सामान्य वातावरण की पुनः स्थापना के लिए उपाय ढूंढने के लिए ब्रटनवुड न्यू हैम्पशायर में एकत्रित हुए। बैठक की समाप्ति के बाद अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आई.एफ.एफ.), पुनर्निर्माण एवं विकास का अन्तर्राष्ट्रीय बैंक (आई.बी.आर.डी.) एवं अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार संगठन (आई.टी.ओ.) की स्थापना हुई। प्रथम दो संस्थान तुरन्त अस्तित्व में आ गये। लेकिन आई.टी.ओ. की स्थापना का अमेरिका द्वारा विरोध किये जाने के कारण इसकी जगह एक नई व्यवस्था जनरल फॉर टैरिफ एण्ड ट्रेड (जी.ए.टी.टी.) अस्तित्व में आयी।

भारत इन तीनों संस्थाओं का प्रमुख सदस्य है।
1.विश्व बैंक-आई.बी.आर.डी. अर्थात् विश्व बैंक की स्थापना का मुख्य उद्देश्य युद्ध से प्रभावित यूरोप के देशों की अर्थव्यवस्थाओं का पुनर्निर्माण एवं अविकसित देशों को विकास के कार्यों में सहायता करना था। इसी के तहत अविकसित देशों में निवेश की पहल को मूर्त रूप देने के लिए सन् 1960 में अन्तर्राष्ट्रीय विकास संघ (आई.डी.ए.) की स्थापना की गई। यह संस्थान गरीब देशों को रियायती दरों पर ऋण उपलब्ध कराता है।

2. अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आई.एम.एफ.)-सन् 1945 में स्थापित इस संस्थान का मुख्य उद्देश्य अन्तर्राष्ट्रीय भुगतान प्रणाली को सुविधाजनक बनाना एवं राष्ट्रीय मुद्राओं में विनिमय दर को समायोजित करना है। सन् 2005 में इसके 91 देश सदस्य थे।

3. विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यू.टी.ओ.) एवं प्रमुख समझौते-अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष एवं विश्व बैंक की | तर्ज पर ब्रैटन वुड सम्मेलन में शुरू में अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार संघ की स्थापना का निर्णय लिया गया। 1 जनवरी, 1948 को इसके स्थान पर जी.ए.टी.टी. अस्तित्व में आया। यह दिसबर, 1994 तक कार्य करता रहा। 1 जनवरी, 1995 से जी.ए.टी.टी. को विश्व व्यापार संगठन में परिवर्तित कर दिया गया। इसका मुख्यालय जनेवा (स्विट्जरलैण्ड) में स्थित है। 11 दिसम्बर, 2005 को इसके 149 देश सदस्य थे। इसका मुख्य उद्देश्य आय में वृद्धि एवं जीवन स्तर में सुधार पूर्ण रोजगार सुनिश्चित करना, उत्पादन एवं व्यापार का विस्तार एवं विश्व के संसाधनों का समुचित उपयोग करना है।

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